क्या जानते हो
नदी मैं तैरते हुए सोचता हूं
पानी नदी के बारे में क्या जानता है
नदी से पूछता हूं
तुम पानी की हो या मेरी
नदी कोई जवाब नहीं देती
वह हवा की ओर इशारा करती है
धूप से आंखमिचौली खेलती हवा के बारे में
हम क्या जानते हैं
कोई किसी के बारे में क्या जानता है
एक स्त्री जो रोज चूल्हा जलाती है
आग के बारे में क्या जानती है
आग ही आग के बारे में क्या जानती है
मैं उदास हूं तो मित्र
तुम भी उदास हो जाते हो
मेरी उदासी में
किसकी हंसी शामिल है
तुम क्या जानते हो?
(हरे प्रकाश उपाध्याय की कविता)
Saturday, November 15, 2008
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