Saturday, November 15, 2008

और भी दूं

मन समर्पित तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तूझे कुछ और भी दूं

मां तुम्हारा रिन बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाउं सजा कर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण

गान अर्पित प्राण अर्पित
रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

मांज दो तलवार , लाओं न देरीं
बांध दो कस कर कर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धुल थोडी
शीश पर आशीश की छाया घनेरी

स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का छण छण समर्पित
चाहता हुं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

तोडता हुं मोह का बंधन, क्षमा दो
गांव मेरे, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बाऐं हाथ में ध्वज थमा दो

यह सुमन लो, यह चमन लो
नीड का रिन रिन समर्पित
चाहता हुं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं

(राम अवतार त्यागी की कविता)

1 comment:

Unknown said...

shivesh ji

namskar, kavita pardh ke achha lagal aur pardh ke man gadgad ho gaiel. ye bichar yadi hamra desh ke har nawjwan ke dil me aa jaye ta u din dur ne rahi jab bharat ke koi vishw guru banla se rok sakela.aour rauaa se nivedan ba ki anhi ga desh bhakti ke kabita website par likhat ranhi.
dhanyabad
santosh kapoor gram+post-fulwariya thana
maker zila-chhapra bihar