Saturday, November 15, 2008

मीठा पानी

घर लौटकर मैंने पत्नी को बैग थमाया । मेरे हाथ में पानी की बोतल थी,वह भी साथ ही थमाई,पानी की बोतल में पानी देखकर वह हैरानी से बोली ,"अरे सुबह वाला पानी अभी तक बच रहा है? गर्मी तो बहुत थी पिया नही क्या?" अरे नही ,चंडीगढ बस स्टैंड पर कुछ समय के लिए बस रुकी थी ,यह तो वहां से दोबारा भरा हुआ है.
सुनते ही उसकी आंखों में चमक आ गई. , खुशी से चमकती हुई बोली , अहा चंडीगढ का पानी तो बहुत मीठा होता है
क्योंकि वहां तुम्हारा मायका है इसलिए ? मैने कहा तो वह इतराती हुई बोली, और क्या ! कहकर उसने ढक्कन खोला और बोतल मुंह से लगाकर गटगट पानी पीने लगी. मुझे तो ऐसा कोई फर्क लगा नहीं, मैनें कहा तो उसने सुना ही नही । मुझसे बेपरवाह वह पानी में मग्न ,उसकी मिठास में खो-सी गई ।
मेरा मन एकदम से कडवा हो गया कहे बिना न रह सका , कैसी औरत हो तुम जो शादी के दस साल बाद भी तुम्हें ससुराल के पानी की मिठास महसुस नही हुई । सुनते ही पानी उसके गले में में पानी अटक गया , बोतल मुंह से हटाकर पहले धीरे-धीरे पानी गटका फिर आहत स्वर में बोलीं, " मनोज ...ससुराल का पानी तो बहुत ही मिठा है ! ये तो आज अपने शहर का पानी देखा तो पीछे छुटा सब याद आ गया...! खैर ! छोडो, तुम नही समझोगे , मेरी आंखों में आंखें गडाती हुई वह रोषपूर्वक बोली थी, तुम कभी भी नही समझोगे ।

( अरुण कुमार की लघुकथा)

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