Saturday, November 15, 2008

रिश्ते

उनके लिए रिश्ते
अखबार से ज्यादा कोई अहमियत नही रखते थे
जब तक ताजे थे डिमांड में थे
बासी होते ही
पुरानी तारीख की नाईं
कैलेंडर के सीने से उतर जाते थे

एक बार उन्होंने मुझे एक खत लिखा
खत में उन्होंने लिखा
कि मैं और वे एक ही वेवलेंथ पर धडकते थे
मैंने सोचा,सोचा ,बहुत सोचा
मुझॆ उनके कथन में सच्चाई नजर आई

वे बाजार के रंग में
होली के रंगो को डुबोते रहे
मैं स्याह गलियों और कूंचों में
टेशु के रंग तलाशती रही
और जल्दी ही बासी हो गई

उन्होंने रिश्तों की राख को एक कैप्सुल में बंद कर
औरबिट में भेज दिया
ताकि उसे चंद्रमा की सतह पर फैलाया जा सके
उन्होंने रिश्तों का एक नया इतिहास लिखा
जिसमें मरें हुए रिश्तों की शांति के लिए
दो मिनट का मौन शामिल था

(किरण अग्रवाल की कविता)

1 comment:

Unknown said...

kya baat hain rishton ki kaafi samajh hai aapko......good poem and a good choice....