उनके लिए रिश्ते
अखबार से ज्यादा कोई अहमियत नही रखते थे
जब तक ताजे थे डिमांड में थे
बासी होते ही
पुरानी तारीख की नाईं
कैलेंडर के सीने से उतर जाते थे
एक बार उन्होंने मुझे एक खत लिखा
खत में उन्होंने लिखा
कि मैं और वे एक ही वेवलेंथ पर धडकते थे
मैंने सोचा,सोचा ,बहुत सोचा
मुझॆ उनके कथन में सच्चाई नजर आई
वे बाजार के रंग में
होली के रंगो को डुबोते रहे
मैं स्याह गलियों और कूंचों में
टेशु के रंग तलाशती रही
और जल्दी ही बासी हो गई
उन्होंने रिश्तों की राख को एक कैप्सुल में बंद कर
औरबिट में भेज दिया
ताकि उसे चंद्रमा की सतह पर फैलाया जा सके
उन्होंने रिश्तों का एक नया इतिहास लिखा
जिसमें मरें हुए रिश्तों की शांति के लिए
दो मिनट का मौन शामिल था
(किरण अग्रवाल की कविता)
Saturday, November 15, 2008
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1 comment:
kya baat hain rishton ki kaafi samajh hai aapko......good poem and a good choice....
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